प्रदूषण नियंत्रण के लिए सम-विषम का फेर
नए प्रधान न्यायाधीश जस्टिस टीएस ठाकुर ने रविवार को दिल्ली सरकार के सम-विषम ट्रैफिक फॉर्मूले का समर्थन किया, तो स्वाभाविकत: दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल उत्साहित हुए। इस फॉर्मूले के तहत आगामी एक जनवरी से सोमवार, बुधवार और शुक्रवार को दिल्ली की सड़कों पर सिर्फ उन निजी वाहनों को चलने की इजाजत होगी, जिनके नंबर प्लेट का आखिरी अंक विषम (यानी 1, 3, 5, 7 या 9) होगा। मंगलवार, गुरुवार और शनिवार को सम नंबर (0, 2, 4, 6, 8) वाली गाड़ियों के चलने की बारी होगी। मकसद सड़कों पर वाहनों की संख्या घटाना है।
ऐसे कदम की नौबत इसलिए आई कि दिल्ली में धुंध और धुएं के कारण हालात बदतर होते चले गए। इतने कि दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा - 'ऐसा लगता है जैसे हम गैस चैंबर में पहुंच गए हों।" राष्ट्रीय राजधानी की हवा आसपास के कुछ राज्यों में कचरा जलाने के कारण भी गंदी हुई, मगर इसकी सबसे बड़ी वजह यहां डीजल की अनियंत्रित खपत है। प्रदूषण का स्तर खतरनाक सीमा पार करने के बाद नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल और दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार से फौरन कदम उठाने को कहा। इसी के बाद आम आदमी पार्टी सरकार ने दो महत्वपूर्ण उपायों की घोषणा की। सम-विषम ट्रैफिक फॉर्मूले के अलावा राजधानी स्थित दो ताप बिजलीघरों को बंद करने का निर्णय हुआ।
बहरहाल, सम-विषम योजना से कार पर चलने वाले लोग नाखुश हैं। लेकिन पर्यावरणविदों, गैर-सरकारी संगठनों और कुछ राजनेताओं ने भी इस कदम का समर्थन किया है। उनके मुताबिक चयन वर्तमान सुख-सुविधा में कुछ कटौती करने या खतरनाक सीमा पार कर गई प्रदूषित हवा में जीने के बीच है। अगर पर्यावरण स्वच्छ रखने की चिंता वास्तविक है, तो आखिर कहीं-न-कहीं से तो शुरुआत करनी होगी। दुनिया के कई शहरों में सड़कों पर वाहनों की भीड़ घटाने तथा पर्यावरण को स्वच्छ रखने के लिए निजी वाहनों का उपयोग नियंत्रित करने की योजनाएं सफलता से लागू की गई हैं। मगर भारत में अकसर ऐसे इरादे प्रभावशाली समूहों के दबाव में नाकाम हो जाते हैं।
पूर्ववर्ती यूपीए सरकार के कार्यकाल में डीजल कारों पर ग्रीन टैक्स लगाने की बात आई, लेकिन हुआ कुछ नहीं। दिल्ली में पूर्व शीला दीक्षित सरकार ने बसों के लिए अलग लेन बनाने की बीआरटी योजना शुरू की, लेकिन वह पहल भी कहीं नहीं पहुंच सकी। संभव है कि सम-विषम नंबर योजना का भी वही हाल हो। लेकिन तब सवाल उठेगा कि लगातार बढ़ते प्रदूषण का आखिर समाधान क्या है? वैसे इस तरह की योजनाओं की नाकामी के लिए सरकारों का लचर रुख भी जिम्मेदार है। अकसर बिना पूरी तैयारी के योजनाओं को लागू कर दिया जाता है।
सम-विषम योजना की सफलता लोक परिवहन की सहज उपलब्धता एवं कुशलता से जुड़ी हुई है। इस मोर्चे पर केजरीवाल सरकार की क्या योजना है, यह उसने नहीं बताया है। ध्यान में रखने की बात है कि जब तक यह योजना सामने नहीं आती, सम-विषम फॉर्मूला अव्यावहारिक समाधान माना जाता रहेगा।
ऐसे कदम की नौबत इसलिए आई कि दिल्ली में धुंध और धुएं के कारण हालात बदतर होते चले गए। इतने कि दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा - 'ऐसा लगता है जैसे हम गैस चैंबर में पहुंच गए हों।" राष्ट्रीय राजधानी की हवा आसपास के कुछ राज्यों में कचरा जलाने के कारण भी गंदी हुई, मगर इसकी सबसे बड़ी वजह यहां डीजल की अनियंत्रित खपत है। प्रदूषण का स्तर खतरनाक सीमा पार करने के बाद नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल और दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार से फौरन कदम उठाने को कहा। इसी के बाद आम आदमी पार्टी सरकार ने दो महत्वपूर्ण उपायों की घोषणा की। सम-विषम ट्रैफिक फॉर्मूले के अलावा राजधानी स्थित दो ताप बिजलीघरों को बंद करने का निर्णय हुआ।
बहरहाल, सम-विषम योजना से कार पर चलने वाले लोग नाखुश हैं। लेकिन पर्यावरणविदों, गैर-सरकारी संगठनों और कुछ राजनेताओं ने भी इस कदम का समर्थन किया है। उनके मुताबिक चयन वर्तमान सुख-सुविधा में कुछ कटौती करने या खतरनाक सीमा पार कर गई प्रदूषित हवा में जीने के बीच है। अगर पर्यावरण स्वच्छ रखने की चिंता वास्तविक है, तो आखिर कहीं-न-कहीं से तो शुरुआत करनी होगी। दुनिया के कई शहरों में सड़कों पर वाहनों की भीड़ घटाने तथा पर्यावरण को स्वच्छ रखने के लिए निजी वाहनों का उपयोग नियंत्रित करने की योजनाएं सफलता से लागू की गई हैं। मगर भारत में अकसर ऐसे इरादे प्रभावशाली समूहों के दबाव में नाकाम हो जाते हैं।
पूर्ववर्ती यूपीए सरकार के कार्यकाल में डीजल कारों पर ग्रीन टैक्स लगाने की बात आई, लेकिन हुआ कुछ नहीं। दिल्ली में पूर्व शीला दीक्षित सरकार ने बसों के लिए अलग लेन बनाने की बीआरटी योजना शुरू की, लेकिन वह पहल भी कहीं नहीं पहुंच सकी। संभव है कि सम-विषम नंबर योजना का भी वही हाल हो। लेकिन तब सवाल उठेगा कि लगातार बढ़ते प्रदूषण का आखिर समाधान क्या है? वैसे इस तरह की योजनाओं की नाकामी के लिए सरकारों का लचर रुख भी जिम्मेदार है। अकसर बिना पूरी तैयारी के योजनाओं को लागू कर दिया जाता है।
सम-विषम योजना की सफलता लोक परिवहन की सहज उपलब्धता एवं कुशलता से जुड़ी हुई है। इस मोर्चे पर केजरीवाल सरकार की क्या योजना है, यह उसने नहीं बताया है। ध्यान में रखने की बात है कि जब तक यह योजना सामने नहीं आती, सम-विषम फॉर्मूला अव्यावहारिक समाधान माना जाता रहेगा।
आभार - नई दुनिया
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